भोपालः कृषि कानूनों के विरोध में देशभर के किसान पिछले 6 महीने से दिल्ली की सिंघु बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इसी के समर्थन में कई किसान संगठनों ने आज ‘काला दिवस’ मनाने की घोषणा की. लेकिन भारतीय किसान संगठन ने इससे किनारा करते हुए बताया कि वो इस काम का समर्थन नहीं करते.
प्रेस नोट जारी कर दी जानकारी
भारतीय किसान संघ ने प्रेस नोट जारी कर बताया कि भारतीय किसान संघ ‘काला दिवस’ मनाने का समर्थन नहीं करता. संघ ने कहा कि ‘काला दिवस’ मनाने वाले संगठन देश में भय, आतंक और भ्रम फैलाना चाह रहे हैं. भाकिसं (भारतीय किसान संघ) के क्षेत्रीय संगठन मंत्री महेश चौधरी ने भी ’26 मई काला दिवस’ का विरोध किया.
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इस कारण मना रहे काला दिवस
26 मई को काला दिवस मनाने पर किसान संगठनों का कहना है कि 26 नवंबर 2020 को किसान आंदोलन शुरू हुआ. आज ही के दिन इसके 6 महीने पूरे हो रहे हैं, इस कारण वे इसे काला दिवस के रूप में मना कर विरोध प्रदर्शन करेंगे. संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने घरों, वाहनों और अन्य स्थानों पर काला झंडा लहराकर ‘काला दिवस’ मनाने की अपील की.
ये राजनीतिक दल समर्थन में
काला दिवस के समर्थन में कई राजनीतिक दल भी साथ आए. इनमें पंजाब के सभी विपक्षी दल समेत आम आदमी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ समेत और भी कई पार्टियां काला दिवस के समर्थन में उतर आई हैं.
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किसान क्यों कर रहे हैं विरोध
सितंबर 2020 को संसद में तीन नए कृषि कानून पारित हुए, जिसे राष्ट्रपति से हस्ताक्षर के बाद मंजूरी भी मिल गई. भारतीय किसान संगठन का कहना है कि तीनों ही कानून किसान विरोधी हैं, इन्हें वापस लिया जाए. जब तक कानून वापस नहीं होते, वे दिल्ली की सिंघु बॉर्डर पर तैनात होकर विरोध करेंगे.
केंद्र सरकार किसानों से बातचीत कर कानून के कुछ हिस्सों में संशोधन करना चाह रही है. सरकार का दावा है कि कृषि कानूनों से किसानों को किसी भी तरह का नुकसान नहीं है. लेकिन किसानों की एक ही मांग है कि कानून वापस लिए जाए, इससे कम कुछ भी नहीं. जिसे लेकर वे 26 नवंबर 2020 से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
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