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प्रयागराज:  इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सरकारी पद पर नियुक्ति के समय अभ्यर्थी से नाबालिग रहते हुए अपराध के खुलासे की मांग उसे निजता और गरिमा के मूल अधिकार का उल्लंघन है. किसी भी नियोजक को नाबालिग के अपराध का खुलासा करने की मांग का अधिकार नहीं हैं. ऐसा करना या सबूत छिपाना या झूठी घोषणा नहीं माना जाएगा.यह फैसला न्यायमूर्ति अजय भनोट ने अनुज कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया.

बालिग के अपराध की जानकारी नियुक्ति के समय मांगी जा सकती है
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि बालिग के अपराध की जानकारी नियुक्ति के समय मांगी जा सकती है और छिपाने पर नियुक्ति से इनकार किया जा सकता है लेकिन यह नाबालिग के अपराध पर लागू नहीं होगा. 

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नहीं बना सकते अपराध में मिली सजा को नियुक्ति से इनकार करने का आधार 
कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड से अपराध में मिली सजा को नियुक्ति से इनकार करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है. यह छूट 16 से 18 वर्ष आयु के नाबालिग को हत्या, रेप जैसे जघन्य अपराध के दोषी होने पर नहीं मिलेगी.

अनुच्छेद 21 में मिले निजता व गरिमा के मूल अधिकार का उल्लंघन
कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति के समय अभ्यर्थी से नाबालिग रहते हुए अपराध के खुलासे की मांग संविधान के अनुच्छेद 21 में मिले निजता व गरिमा के मूल अधिकार का उल्लंघन है. यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने अनुज कुमार की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है.

कमांडेंट के आदेश को मनमानापूर्ण करार देते हुए किया रद्द 
इसी के साथ कोर्ट ने नाबालिग रहते हुए नकल के आरोप में लोक अदालत से जुर्माने की सजा पाए याची को पीएसी कांस्टेबल पद पर नियुक्त करने का निर्देश दिया है कोर्ट ने 23वीं वाहिनी पीएसी एटा में नियुक्ति देने से इनकार करने के कमांडेंट के आदेश को मनमानापूर्ण करार देते हुए रद्द कर दिया है. 

कोर्ट ने कहा कि किसी भी नियोजक को नाबालिग रहते हुए अपराध (जघन्य नही) में मिली सजा के आधार पर नियुक्ति से इनकार करने का अधिकार नहीं है. चयनित अभ्यर्थी नाबालिग रहने के दौरान हुए अपराध पर चुप रह सकता है और उसे इसकी जानकारी देने से इनकार करने का पूरा अधिकार है.

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