काठमांडू: नेपाल के विपक्षी दलों ने शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में नयी सरकार बनाने का दावा पेश करने का फैसला किया है, जिसके बाद इस देश में चल रहे राजनीतिक संकट के हालात में नया मोड़ आ गया है.
राष्ट्रपति आवास पर पहुंचे थे विपक्षी नेता
विपक्षी दलों का फैसला तब आया है जब प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली संसद में अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के लिए एक और बार शक्ति परीक्षण से गुजरने में अनिच्छा व्यक्त कर चुके हैं. विपक्षी गठबंधन के नेता नयी सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के आधिकारिक आवास पर पहुंच गये हैं.
देउबा ने किया 149 सदस्यों के समर्थन का दावा
नेपाली कांग्रेस (एनसी), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर), जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) के उपेंद्र यादव नीत धड़े और सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल के माधव नेपाल नीत धड़े समेत विपक्षी गठबंधन ने प्रतिनिधि सभा में 149 सदस्यों का समर्थन होने का दावा किया है. एनसी के वरिष्ठ नेता प्रकाश मान सिंह ने यह जानकारी दी.
देउबा को प्रधानमंत्री बनाने की सिफारिश
‘माई रिपब्लिका’ वेबसाइट के अनुसार इन सदस्यों में नेपाली कांग्रेस के 61, सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) के 48, जेएसपी के 13 और यूएमएल के 27 सदस्यों के शामिल होने का दावा किया गया है. ‘हिमालयन टाइम्स’ की खबर के अनुसार विपक्षी गठबंधन के नेता 149 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ सरकार बनाने का दावा करने वाला पत्र राष्ट्रपति को सौंपने के लिए उनके सरकारी आवास ‘शीतल निवास’ के लिए रवाना हो गए. इस पत्र में शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री बनाने की सिफारिश की गयी है.
नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष हैं देउबा
देउबा (74) नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. वह 1995 से 1997 तक, 2001 से 2002 तक, 2004 से 2005 तक और 2017 से 2018 तक इस पद पर रहे हैं. देउबा 2017 में आम चुनावों के बाद से विपक्ष के नेता हैं. राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने राजनीतिक दलों को नयी सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए शुक्रवार शाम 5 बजे तक का समय दिया था.
ओली नहीं बनाना चाहते सरकार
सरकार ने बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति भंडारी से सिफारिश की थी कि नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के अनुरूप नयी सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाए क्योंकि प्रधानमंत्री ओली एक और बार शक्ति परीक्षण से गुजरने के पक्ष में नहीं हैं. प्रधानमंत्री ओली को 10 मई को उनके पुन: निर्वाचन के बाद प्रतिनिधि सभा में 30 दिन के अंदर बहुमत साबित करना था. आशंका थी कि अगर अनुच्छेद 76 (5) के तहत नई सरकार नहीं बन सकी तो ओली अनुच्छेद 76 (7) का प्रयोग कर एक बार फिर प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफारिश करते.