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Patna: कोरोना, उसके संक्रमण और टीके को लेकर पूरे विश्व मे रिसर्च जारी है. हर दिन इसपर होने वाले शोध को लेकर नई-नई जानकारियां मिल रही हैं. इसी क्रम में विशेषज्ञों की एक टीम ने अपने शोध में पाया है कि कोरोना से बचाव के लिए एक ही तरह के दो टीके लेने से बेहतर दो बार दो अलग-अलग तरह के टीके लिए जाएं तो बेहतर परिमाण सामने आ सकते हैं.
स्पेन में 600 से ज्यादा लोगों पर इस तरह का परीक्षण किया गया है. आरंभिक नतीजों में पाया गया कि जिन लोगों ने एस्ट्राजेनेका कंपनी के टीके कोविशील्ड की पहली खुराक लेने के 8 हफ्ते बाद फाइजर के टीके की दूसरी खुराक ली उनके शरीर में प्रतिरोधक एंटीबॉडी ज्यादा पाई गई. जबकि रिसर्च में 232 ऐसे लोगों को शामिल किया गया जिन्हें दूसरी खुराक नहीं दी गई.
फाइजर की दूसरी खुराक लेने वालों में बड़ी संख्या में प्रतिरोधक एंटीबॉडी मिलीं. जबकि जिन्हें खुराक नहीं दी गई थी, उनमें एंटीबॉडी की संख्या में कोई बदलाव नहीं देखा गया. यूरोप में ये प्रचलन बढ़ता नजर आ रहा है. जिन लोगों को एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) टीके की पहली डोज दी गई है अब वहां की सरकारें उन्हें इसी कंपनी की दूसरी खुराक देने के पक्ष में नहीं है.
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वहीं, ब्रिटेन में हुए शोध के नतीजे थोड़े अलग हैं. यहां शोध में यह कहा गया है कि दो टीके मिलाने से ज्यादा लोगों में दुष्प्रभाव देखे गए. आमतौर पर टीके की दोनों खुराकें एक जैसी हों या अलग-अलग हों इस पर पहले से ही बहस चल रही है. कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि दूसरी अलग खुराक होने से ज्यादा एंटीबॉडी बनती हैं, जबकि उसी टीके को दोबारा देने से कई बार यह प्रतिरोधक तंत्र के खिलाफ भी काम कर सकता है.
बता दें कि भारत में अभी दो टीके कोविशील्ड और कोवैक्सीन लगाए जा रहे हैं. उसमें एक ही टीके को दो बार दिया जाता है. जबकि स्पुतनिक वी की दोनो खुराकें अलग अलग हैं.
देश में तीसरे टीके के रूप में स्पूतनिक-वी शुरू हो रहा है. उसकी दोनों खुराकें अलग-अलग हैं. इसकी पहली डोज में आरएडी-26 तथा दूसरी डोज में आरएडी-5 वैक्टर का इस्तेमाल किया गया है. यह दोनों फ्लू के एडिनोवायरस हैं. इसलिए स्पूतनिक-वी टीके के ज्यादा प्रभावी होने का दावा किया जा रहा.