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Patna: बिहार में लॉकडाउन की वजह से लोगों की रोजी-रोटी पर बेहद बुरा असर देखने को मिल रहा है. सबसे ज्यादा स्थिति उन लोगों की खराब हो चुकी है, जो दैनिक मजदूरी करके अपना जीवन यापन किया करते थे.

पटना के पहाड़ी स्थित ट्रांसपोर्ट नगर में मजदूरों ने अपनी व्यथा सुनाई. ट्रांसपोर्ट नगर में आम दिनों में तकरीबन ढाई से लेकर 3 हज़ार मजदूरों का जीवन यापन ट्रकों के लोडिंग अनलोडिंग पर निर्भर है. लेकिन, लॉकडाउन की वजह से ट्रकों की कम आवाजाही से अभी लोडिंग अनलोडिंग में 75 फीसदी की कमी आ गई है.

मजदूरों का कहना है कि इससे तो अच्छा होता कि कोरोना उन्हें पकड़ लेता और उसकी जान चली जाती क्योंकि घर परिवार का खर्च चलाना, बच्चों का पेट पालना उनके लिए बेहद मुश्किल हो रहा है. कई लोगों ने कहा कि कभी-कभी तो लगता है कि सुसाइड कर लिया जाए. वहीं, वहां मौजूद एक ड्राइवर ने कहा कि पिछले 1 साल में हालात काफी बदल चुके हैं. सड़कें वीरान हो गईं हैं और रात्रि के दौरान भोजन पानी तक के लिए सोचना पड़ता है.
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बांकीपुर बस स्टैंड पर सन्नाटा
पटना के बांकीपुर बस स्टैंड पर सन्नाटा पसरा हुआ है, जहां मई के महीने में यात्रियों का हुजूम देखने को मिलता था. वहां मौजूद कुछ बस यात्रियों ने बताया कि मजबूरी में ही वो यात्रा कर रहे हैं. घर वापस जा रहे छात्र-छात्राओं ने कहा कि होस्टल में खाने पीने की दिक्कत है. माहौल इतना डरावना हो चुका है कि वो अब अपने गांव और परिवार ही जाना ज्यादा मुनासिब समझ रहे हैं.बस के ड्राइवर ने भी कहा कि लगन के समय में इतनी भीड़ होती थी कि बस स्टैंड में पैर रखने तक कि जगह नहीं मिलती थी, लेकिन आज कोरोना की वजह से सब तरफ वीरानी और उदासी छाई हुई है.

सरकार के दावे की खुली पोल
कोरोना की वजह से दानापुर जंक्शन भी वीरान बना हुआ है. कुछ दिन पहले तक जिस स्टेशन से दिनभर में कई जोड़ी ट्रेनें अलग-अलग प्रदेशों में जाया करती थी,आज वहां दूसरे प्रदेशों से आनेवाले तो दिख रहे हैं लेकिन जाने वाले ना के बराबर हैं. स्टेशन पर कुछ लोग चेन्नई जा रहे थे. रोजी-रोजगार के बारे में पूछने पर जो जवाब मिला उसने बिहार सरकार के दावे की पोल खोल दी. लोगों ने कहा कि राज्य सरकार भले ही कह रही है कि जिन लोगों के पास भी रोजगार की दिक्कत है उन्हें सरकार रोजगार दे रही है. लेकिन, यह सही नहीं है. ऐसा होता तो इस महामारी के समय में वह क्यों अपने घर गांव से दूर चेन्नई जाते. उन्होंने बताया कि न उनकी मुखिया ने सुनी ,ना ही विधायक ने सुनी लिहाजा बच्चों का पेट पालने के लिए घर खर्च चलाने के लिए वह खतरों को जानते हुए भी वापस अपने काम पर जा रहे हैं.