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नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 मई को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्था को राम भरोसे बताया था. न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार एक महीने के अंदर पीएचसी और सीएचसी में आईसीयू बेड्स, ऑक्सीजन बेड्स, हर गांव में दो-दो आईसीयू एंबुलेंस की व्यवस्था करे. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है.

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आदेश लागू करने की व्यावहारिकता पर विचार करें हाई कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के सभी हाई कोर्ट को अपने आदेश को लागू करने की व्यावहारिकता पर विचार करना चाहिए. ऐसे आदेशों को पारित नहीं करना चाहिए जिन्हें लागू करना असंभव है. दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए ग्रामीण इलाकों में इलाज के इंतजामों और टीकाकरण पर विस्तृत आदेश दिए थे और एक महीने के अंदर इन्हें लागू करने के लिए कहा था. आदेश के अमल को मुश्किल बताते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

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यूपी में 97 हजार गांव हैं, कोर्ट के आदेश पर अमल संभव नहीं
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को यूपी सरकार की याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी, लेकिन चल रही सुनवाई पर रोक नहीं लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के 17 मई के निर्देशों को आदेश की तरह नहीं बल्कि सलाह के तौर पर माना जाएगा. यूपी सरकार का पक्ष रख रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य में 97,000 गांव हैं, ऐसे में हाई कोर्ट के आदेश पर एक महीने में अमल संभव नहीं है. 

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सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा यूपी सरकार का पक्ष
तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा कि हाई कोर्ट जनहित को ध्यान में रखते हुए कोरोना मामलों की सुनवाई कर रहे हैं. सरकार हर तरह से सहयोग और कोर्ट के आदेशों पर अमल को लेकर प्रतिबद्ध है. लेकिन हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि मेडिकल कंपनियां वैक्सीन का फार्मूला लेकर वैक्सीन का उत्पादन करें, आखिर यह कैसे संभव है? कई मामलों में वैक्सीन पेटेंट कानून में आती है. हाई कोर्ट को आदेश देते समय उसके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभावों पर भी विचार करना चाहिए.

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असंभवता का सिद्धांत कोर्ट में भी लागू होता है: सुप्रीम कोर्ट
सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट ने प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को राम भरोसे बताया है. यह टिप्पणी कोरोना के इलाज में जुटे डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को हतोत्साहित करने वाली और लोगों में चिंता पैदा करने वाली है. वह हाई कोर्ट की चिंता समझ सकते हैं, लेकिन कोर्ट को भी न्यायिक संयम बरतना चाहिए. मेहता की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जनहित में हाई कोर्ट द्वारा की जा रही सुनवाई की सराहना करते हैं. लेकिन असंभवता का सिद्धांत कोर्ट में भी लागू होता है.

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इस मामले में 14 जुलाई को फिर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
तुषार मेहता द्वारा कोरोना से जुड़े मामलों की सुनवाई हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की पीठ में होने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सभी मामलों में समान आदेश नहीं दे सकते. पीठ गठन का अधिकार मुख्य न्यायाधीश का होता है. पीठ ने कहा कि उन्होंने संतुलित आदेश दिया है, वह हाई कोर्ट को हतोत्साहित नहीं करना चाहते. सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता को सुनवाई में मदद के लिए नियुक्त किया और मामले को 14 जुलाई को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया.

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