अविनाश प्रसाद/बस्तर: झीरम नक्सल कांड की आज 7वीं बरसी है. आज ही के दिन 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर बस्तर की झीरम घाटी में नक्सलियों ने हमला कर दिया था. जिसमें वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं समेत कुल 27 लोगों की मौत हो गई थी. इस विभत्स हत्याकांड में कांग्रेस ने अपनी पहली पंक्ति के नेताओं विद्याचरण शुक्ल, नंद कुमार पटेल और महेंद्र कर्मा को खोया था. इस जनसंहार ने भारत देश समेत संपूर्ण विश्व को बस्तर में पनप रहे माओवाद की हिंसक तस्वीद दिखा दी थी.
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घटना के बाद PM डॉ. मनमोहन सिंह ने दिए थे जांच के आदेश
इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एनआईए जांच के निर्देश दिए थे. जिसके बाद 5 जून 2013 को एनआईए की टीम बस्तर पहुंची थी और जांच शुरू हुई थी. इसके बाद एनआईए ने 23 सितंबर 2014 को पहला और 16 सितंबर 2015 को अंतिम जांच रिपोर्ट बिलासपुर हाईकोर्ट के समक्ष रखा. इस मामले पर रिटायर्ड जज मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का भी गठन किया गया, लेकिन कांग्रेस इसे राजनीतिक हत्याकांड कहती रही.
सत्ता परिवर्तन के बाद फरवरी 2020 में कांग्रेस ने इस मामले पर एसआईटी का गठन किया था. साथ ही एनआईए से दस्तावेज भी मांगे गए लेकिन दस्तावेज ना देने के कारण जांच अभी शुरू नहीं हो पाई है. कुल मिलाकर यह पूरा मामला राजनीति का शिकार हो गया और झीरम घाटी का सच आज तक उजागर नहीं हो पाया. आरोप-प्रत्यारोप के बीच मृतकों की आत्माएं न्याय का इंतजार कर रही हैं.
परिजनों को आज तक नहीं मिल पाया न्याय
झीरम की आठवीं बरसी पर Zee मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की टीम ने मृतकों के परिजनों से मुलाकात की और इस पूरे मामले पर उनका पक्ष जाना. झीरम घाटी बस्तर जिले के दरभा ब्लॉक में है और दरभा ब्लॉक में ही कई मृतकों के परिजनों का घर है. मृतक मनोज कुमार की शादी को 3 महीने हुए थे और इस घटना में नक्सलियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया. मनोज की मां रंभा देवी अपने इकलौते पुत्र को खोने के बाद आज तक सदमे से बाहर नहीं निकल पाईं हैं. उन्हें न तो पर्याप्त मुआवजा मिला और ना ही न्याय. वह आज भी अपने इकलौते बेटे के हत्यारों को सजा दिए जाने की घड़ी का इंतजार कर रही हैं.
इसी तरह मृतक राजकुमार की मां भी अपने इकलौते पुत्र को होने के बाद न्याय की बाट जो रहीं हैं. राजकुमार की मां तारावती कहती हैं कि 8 साल बीत गए लेकिन इन 8 सालों में न तो सरकार ने सुध ली और ना ही नेताओं ने. इस दौरान उन्हें अगर कुछ मिला तो सिर्फ प्रशासन द्वारा दिया गया शॉल और श्रीफल.
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8 सालों में चैन की नींद नहीं सो पाया मृतक सदाराम का परिवार
झीरम घाटी में मृतकों के आश्रितों की दयनीय स्थिति की कहानी बेहद लंबी है. मृतक भागीरथी और मृतक सदाराम का परिवार भी इन 8 सालों में चैन की नींद नहीं सो पाया है. बच्चे अचानक रात को जागकर अपने पिता को खोजने लगते हैं. मां उन्हें सिर्फ दिलासा ही देती रह जाती है. राजनीतिक दलों ने झीरम मामले से पर्याप्त लाभ उठाने की कोशिश की, लेकिन मृतकों को न्याय दिलाने में किसी की भी विशेष दिलचस्पी नहीं रही.
वहीं, झीरम नक्सल हमले के प्रत्यक्षदर्शी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजीव नारंग खुद भी मानते हैं कि इस मामले पर कभी सही ढंग से जांच ही नहीं हुई. वे आज भी उस पल को याद कर के सहम जाते हैं, जब उनकी ही आंखों के सामने दर्जनों साथियों की हत्याएं कर दी गईं. वे कहते हैं कि नक्सलियों का सफाया बेहद जरूरी है. उनका कहना है कि सत्ताएं बदल रही हैं और वक़्त भी, लेकिन झीरम हमले के मृतकों को न्याय कब मिलेगा ये सवाल आज भी अपनी जगह 8 साल से खड़ा है. न्याय की उम्मीद लगाए बैठे मृतकों के परिजनों की आस न टूट जाए. बस इसी बात का भय है.
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