मुंबई: राज्य सरकारों को सत्ता में बनाये रखने में चुनावी वर्ष के दौरान प्रचार और विज्ञापन पर किए जाने खर्च का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की शुक्रवार को जारी एक रपट में यह बात कही गयी है. एसबीआई अर्थशास्त्रियों की इस रिपोर्ट में पिछले पांच वर्षों में 23 राज्यों के चुनावों के विश्लेषण के आधार पर कहा गया है कि जिन राज्यों में चुनावी साल में प्रचार पर सरकारी खर्च कम था, उनमें ज्यादातर सरकारें चुनाव हार गईं.

लगभग हर जगह रहा एक जैसा ट्रेंड

इसमें कहा गया है कि हालांकि इन चुनावों में मतदान करने के लिए निकलने वाले मतदाताओं की संख्या, महिला मतदाता, जाति-आधारित मतदान, वर्तमान नेतृत्व, सत्ता-विरोधी लहर आदि जैसे अन्य कारक थे, लेकिन दस राज्यों में एक आम बात यह निकलती है कि जहां एक पुरानी पार्टी सत्ता बनाए रखने में सक्षम हुई, उसकी वजह चुनावी विज्ञापनों या विज्ञापन पर सार्वजनिक व्यय का बढ़ना था.

केरल सरकार ने बढ़ाया था प्रचार पर 47 फीसदी खर्च

जिन राज्यों के चुनाव परिणाम हाल ही में सामने आए, उनमें केरल और पश्चिम बंगाल ने चुनावी वर्ष में सूचना और प्रचार पर पूंजीगत व्यय में क्रमशः 47 प्रतिशत और 8 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई, जिसके कारण पिनाराई विजयन और ममता बनर्जी सत्ता में बनी रहीं. रिपोर्ट में इस बात उल्लेख किया गया है. दूसरी ओर, तमिलनाडु में, राज्य सरकार द्वारा चुनावी वर्ष के विज्ञापन में मामूली दो प्रतिशत की वृद्धि के बाद सरकार में बदलाव देखा गया.