नई दिल्ली: महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने एक बार कहा था कि असली भारत गांवों में बसता है. ये वो दौर था, जब गांवों को भारत की आत्मा कहा जाता था, और उस समय सिनेमा का प्रारूप भी ऐसा ही होता था, जिसमें गांवों का चित्रण किया जाता था. आपको याद होगा वर्ष 1971 में एक फिल्म भी आई थी, जिसका नाम था ‘मेरा गांव, मेरा देश’. इस फिल्म में गांव की आशाओं और निराशाओं को दिखाया गया. 

लेकिन फिर धीरे-धीरे हम गांवों को भूल गए. क्योंकि सत्ता का जो केंद्र था, वो शहरों में था. मीडिया का केंद्र भी शहरों में था. आज भी हमारे देश का मीडिया शहरों की खबरें दिखाता है, और क्षेत्रीय मीडिया राज्यों की राजधानियों तक सीमित रहता है. हमारे देश के राय बनाने वाले (Opinion Makers) भी शहरों में रहते हैं. सारे सेलेब्रिटी और फिल्म स्टार का घर भी शहरों में होता है. शायद इसीलिए हमारे देश की पूरी व्यवस्था शहरों तक सीमित है. मीडिया कवरेज भी शहरों तक सिमटी हुई है.

गांवों से अभूतपूर्व ‘ग्राउंड रिपोर्ट’

इस कोविड काल में भी आज सब शहरों की बात कर रहे हैं, लेकिन कोई ये नहीं पूछ रहा कि गांवों में क्या हो रहा है? क्योंकि हमारे गांव बहुत पीछे छूट गए हैं. इसलिए आज DNA में हम सबसे पहले देश के गावों से आपको एक विस्तृत रिपोर्ट दिखाएंगे, जो मौजूदा संकट को लेकर सही जानकारी आपको देगी. ये अपनी तरह की पहली ऐसी ग्राउंड रिपोर्ट है, जो गांवों में तेजी से फैलते संक्रमण और उसकी वजहों के बारे में बताती है.

बुखार-खांसी को बीमारी नहीं मान रहे लोग

इस समय कई राज्यों के ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है और कुछ गांव तो ऐसे हैं, जहां पिछले 10 दिनों में कोरोना से 5 या उससे ज्यादा मौतें हुई हैं. समझने वाली बात ये है कि गांव का कोई व्यक्ति जब तक जिला मुख्यालय के कोविड सेंटर नहीं जाता, तब तक सरकारी आंकड़ों में वो ना तो बीमार माना जाता है और ना प्रशासन उसे कोरोना संक्रमित मानता है. हालात ये हैं कि इस समय गांवों में मौतें तो हो रही हैं, लेकिन लोग इसे बुखार और खांसी की बीमार मान रहे हैं. कई गांवों में तो लोगों ने खुद को अपने घरों में बंद कर लिया है. इनमें कुछ गांवों में तो कोरोना से मरने वाले लोगों को कंधा देने के लिए भी लोग नहीं मिल रहे. सोचिए हालात कितने खराब हैं.

कोरोना टेस्ट कराने से आज भी डर रहे लोग

अभी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में संक्रमण की खबरें मिल रही हैं. लेकिन वहां संक्रमण कितना फैला हुआ है, इसका कोई ठीक अनुमान लगाना मुश्किल है. क्योंकि गांवों में ना तो कोरोना की टेस्टिंग की कोई सुविधा है और ना इलाज के इंतजाम हैं. बड़ी बात ये है कि उत्तर प्रदेश के कई गांवों में तो अब पेरासिटामोल (Paracetamol) जैसी दवाइयों की कालाबाजारी शुरू हो गई है. आम दिनों में 6 से 7 रुपये में मिलने वाला 10 गोलियों का पत्ता अब गांवों में 200 रुपये में भी नहीं मिल रहा. यानी ना टेस्टिंग की सुविधा है, ना इलाज की सुविधा है और ना दवाइयां हैं. एक मुश्किल ये भी है कि जो लोग संक्रमित हैं या ऐसा शक है कि वो संक्रमित हो सकते हैं, वो जिला मुख्यालय के कोविड सेंटर जाकर अपना टेस्ट नहीं कराना चाहते. इन लोगों का ऐसा मानना है कि उन्हें कोरोना हो ही नहीं सकता. 

आंकड़ों से समझिए गांवों में कोरोना की स्थिति

गांवों में संक्रमण की इस रफ्तार को आप हरियाणा के कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं. हरियाणा के नूंह में कोरोना मरीजों का पॉजिटिविटी रेट 64.3 प्रतिशत है. जबकि सोनीपत में 57.6 प्रतिशत है, भिवानी में 54.1 प्रतिशत है, पानीपत में 51.5 प्रतिशत है, फरीदाबाद में 44.5 प्रतिशत, रेवाड़ी में 42.6 प्रतिशत है, रोहतक में 42 प्रतिशत है, और गुरुग्राम में 36 प्रतिशत है.

गांवों में रहती है देश की आधी से ज्यादा आबादी

भारत में लगभग साढ़े 6 लाख गांव हैं, जिनमें लगभग 90 करोड़ लोग रहते हैं, और 45 करोड़ लोग शहरों में रहते हैं. यानी हमारे देश की आधी से भी ज्यादा आबादी गांवों में रहती है, जो अब तक कोरोना वायरस से बची हुई थी. लेकिन अब ये संक्रमण उन तक भी पहुंच गया है, और ये स्थिति अच्छी नहीं है. इस समय भारत में कुल संक्रमित मरीजों की संख्या 2 करोड़ 27 लाख है, जिनमें से अनुमान है कि लगभग 80 प्रतिशत मरीज बड़े शहरों में रहने वाले हैं. 18 से 19 प्रतिशत छोटे शहरों में हैं और एक प्रतिशत से भी कम गांवों में हैं. अब अगर गांवों में भी संक्रमण शहरों की तरह फैल जाता है तो आशंका है कि इससे करोड़ों लोग प्रभावित होंगे और ये आंकड़ा भारत के लिए अच्छा नहीं होगा. इसे आप तीन Points में समझिए.

‘पूरे गांव में कोरोना फैल गया तो उपचार संभव नहीं’

पहला प्वाइंट:- गांवों में कोरोना जांच और कोरोना के इलाज की सुविधा नहीं हैं. वैसे तो हमारे देश के 90 करोड़ लोग गांवों में रहते हैं, लेकिन कड़वा सच ये है कि गांवों में ना तो बड़े अस्पताल होते हैं और ना ही डॉक्टर्स हैं. इस समय देश के साढ़े 6 लाख गांवों में प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों की संख्या सिर्फ 25 हजार है. कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर (Community Health Center) सिर्फ साढ़े 5 हजार हैं, और हेल्थ सब सेंटर्स (Health Sub Centers) की संख्या डेढ़ लाख है. लेकिन जो बड़ी बात है वो ये कि इन सभी केन्द्रों पर ना तो पर्याप्त डॉक्टर्स हैं, ना हेल्थ स्टाफ है और ना जरूरी दवाइयां उपलब्ध होती हैं. ऐसे में अगर संक्रमण किसी एक पूरे गांव में फैल जाता है तो सभी लोगों का उपचार करना संभव नहीं होगा. यही वजह है कि शहरों के मुकाबले गांवों में संक्रमण को लेकर ज्यादा चिंता जताई जा रही है.

फर्जी डॉक्टर कर रहे कोरोना संक्रमितों का इलाज

दूसरा प्वाइंट:- गांवों में डॉक्टर्स की संख्या कम है और झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या ज्यादा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा 2016 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 57 प्रतिशत डॉक्टर फर्जी हैं, और इनमें से ज्यादातर गांवों में लोगों का इलाज करते हैं. इस समय भी ऐसा ही हो रहा है. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कई गांवों में यही फर्जी डॉक्टर संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं, और उन्हें मलेरिया और टाइफाइड की दवाइयां खिला रहे हैं. इससे लोगों की हालत और बिगड़ रही है.

लोग मानने को तैयार नहीं कि उन्हें कोरोना हो सकता है

तीसरा प्वाइंट:- गांव के लोग खुद ये मानने को तैयार नहीं है कि उन्हें भी कोरोना वायरस हो सकता है. पिछले एक साल में कोरोना वायरस भारत के शहरों तक सीमित रहा है और इस बीमारी को शहरों की बीमारी भी कुछ लोग कहते हैं. गांवों के लोगों का मानना है कि वो शुद्ध हवा में सांस लेते हैं, अच्छा और पोष्टिक खाना खाते हैं और पिज्जा-बर्गर नहीं खाते, इसलिए उन्हें ये संक्रमण नहीं हो सकता है. जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कोरोना का नया वैरिएंट कई मामलों में मजबूत इम्यून सिस्टम को भेदने में भी सक्षम है.

गांव में कोरोना विस्फोट की स्थिति बताएगी रिपोर्ट

ऐसे में गांवों में लोगों को समझना होगा कि ये वायरस जितना खतरनाक शहर के लोगों के लिए है, उतना ही खतरनाक गांवों के लोगों के लिए भी है. इसी बात को समझाने के लिए आज हमने अलग-अलग गांवों से एक अभूतपूर्व ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है. और ये पहली ऐसी गाउंड रिपोर्ट है, जो गांवों में कोरोना विस्फोट की स्थिति को देश के सामने रखती है. VIDEO के जरिए देखें पूरी रिपोर्ट.

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