नई दिल्ली: ममता बनर्जी तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन गई हैं. बुधवार को उनके शपथ ग्रहण के दौरान कुछ ऐसा हुआ, जो किसी भी मुख्यमंत्री को शर्मिंदा कर देगा. ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद अपनी सरकार की प्राथमिकताओं के बारे में बताया, लेकिन उन्होंने जैसे ही अपनी बात पूरी करके माइक नीचे रखा तो वहां मौजूद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ये माइक उठा लिया. उन्होंने ममता बनर्जी को छोटी बहन बोलकर उन्हें उनका राजधर्म याद दिलाया.
राज्यपाल की ममता बनर्जी को नसीहत
राज्यपाल ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था का राज होना चाहिए और उन्हें उम्मीद है कि ममता बनर्जी संविधान के हिसाब से चलेंगी.’ वैसे तो पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और ममता बनर्जी के बीच हमेशा टकराव चलता रहता है लेकिन ये पहली बार हुआ जब एक राज्यपाल ने किसी मुख्यमंत्री को पहले शपथ दिलाई और बाद में उसे राजधर्म का पालन करने की नसीहत दे डाली.
राज्यपाल के इस रुख ने ममता बनर्जी को आश्चर्य से भर दिया और इसके बाद वो भी जवाब देने में पीछे नहीं रहीं. जैसे ही राज्यपाल ने माइक नीचे रखा, उसके तुरंत बाद ममता बनर्जी ने माइक उठा कर बोलना शुरू कर दिया और अपनी सफाई में कहा कि बंगाल में अभी जो कुछ हो रहा है, उसकी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है. ममता बनर्जी की बातों से ऐसा ही लगा कि उन्हें राज्यपाल की नसीहत अच्छी नहीं लगी. और लगती भी कैसे.
इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया ये दिन
ममता बनर्जी तीसरी बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रही थीं. और ऐसा करते हुए वो बंगाल की राजनीति में इतिहास भी बना रही थीं. लेकिन इस दौरान एक ऐसा इतिहास बन गया, जिसे शायद ही बंगाल कभी भूल पाएगा.
आखिर शपथ ग्रहण के दौरान ऐसी नौबत ही क्यों आई? इसे पश्चिम बंगाल में चुनावों के बाद जारी हिंसा से समझ सकते हैं. कुछ लोग तो ये भी कह रहे हैं कि वर्ष 1990 में जो कश्मीर में हुआ था, वही पश्चिम बंगाल में इस समय हो रहा है.
राज्यपाल ने ‘दीदी’ को याद दिलाया राजधर्म
इस समय ममता बनर्जी देश की सबसे सीनियर मुख्यमंत्रियों में से एक हैं. उनके पास सरकार चलाने का 10 साल का अनुभव है और नई सरकार के लिए उन्होंने फिर से शपथ ले ली है. यानी शासन व्यवस्था चलाने के मामले में वो काफी अनुभवी हैं. लेकिन इसके बावजूद राज्यपाल द्वारा उन्हें राजधर्म की याद दिलाना कई मायनों में अहम है. इसे आप तीन पॉइंट्स में समझ सकते हैं.
पहला- ममता बनर्जी के पिछले शासन में कई ऐसे मौके आए, जब राज्यपाल और उनके बीच टकराव की स्थिति बनी. कई बार उन्होंने राज्यपाल पर सरकार के कामकाज में दखल और दबाव बनाने का भी आरोप लगाया है. और जो कुछ आज हमने देखा उससे से स्पष्ट है कि ममता बनर्जी की नई सरकार में भी राज्यपाल से उनका टकराव देखने को मिल सकता है. यानी ये अध्याय अभी समाप्त नहीं होगा.
दूसरा- राज्यपाल और ममता बनर्जी के बीच आज जो कुछ भी हुआ, उसका असर पश्चिम बंगाल में भड़की राजनीतिक हिंसा पर दिख सकता है. संभव है कि ममता बनर्जी इस हिंसा को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएं और ये भी संभव है कि हिंसा का ये खेला अभी वहां और चले और केंद्र सरकार और बीजेपी से उनका टकराव बढ़ जाए. यानी बीजेपी और ममता बनर्जी के बीच संघर्ष का खेला और चल सकता है.
तीसरा- हमारे संविधान में राज्यपाल को राज्य का सुप्रीम माना गया है. जिस तरह देश की कार्यपालिका के प्रधान राष्ट्रपति होते हैं, ठीक उसी तरह राज्य की कार्यपालिका के प्रधान राज्यपाल होते हैं और राज्यपाल ही मुख्यमंत्री को नियुक्त करते हैं उन्हें शपथ दिलाते हैं. यानी यहां शक्तियों के बीच भी युद्ध है. राज्यपाल और मुख्यमंत्री की शक्तियां अलग-अलग होती हैं. लेकिन दोनों के दायरे अलग-अलग हैं. और यही विवाद का कारण भी है. पश्चिम बंगाल में भी आज से एक बार फिर राज्यपाल और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की शक्तियों में टकराव दिखना शुरू हो गया है, जिसका असर काफी लंबे समय तक दिख सकता है.
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