नई दिल्ली: हम आपको एक ऐसे देश के बारे में बताना चाहते हैं, जिस पर इस समय किसी का ध्यान नहीं है. लेकिन इस देश को इस वक्त मदद की सख्त जरूरत है. इस देश का नाम है नेपाल. नेपाल में कोरोना वायरस की वजह से मौजूदा परिस्थितियां अच्छी नहीं हैं. हालात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने ब्रिटेन के एक अखबार में लेख लिख कर दुनिया से मदद मांगी है.
मुसीबत की घड़ी में नेपाल के साथ भारत
अब आप खुद सोच सकते हैं कि अगर एक देश के प्रधानमंत्री अखबार में ये लिख रहे हैं कि दुनिया को इस समय नेपाल की मदद करनी चाहिए तो नेपाल में स्थिति कितनी गंभीर होगी. इसलिए आज हम ये कहना चाहते हैं कि हमें नेपाल के लोगों की चिंता हैं और इस मुसीबत की घड़ी में हम उनके साथ हैं.
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PM ने लेख लिखकर दुनिया से मांगी मदद
सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि नेपाल के प्रधानमंत्री को ब्रिटेन के एक अखबार के जरिए दुनिया से मदद क्यों मांगनी पड़ रही है? तो इसका जवाब है कि नेपाल में कोरोना वायरस की वजह से हालात काफी गंभीर हैं.
नेपाल की कुल जनसंख्या 3 करोड़ है. यानी ये भारत की राजधानी दिल्ली की कुल आबादी से भी कुछ कम है. लेकिन समस्या ये है कि जहां एक महीने पहले तक नेपाल में प्रतिदिन 100 नए कोरोना संक्रमित मिल रहे थे, वो आंकड़ा अब प्रति दिन 10 हजार के करीब पहुंच गया है और एक महीने में संक्रमण का स्ट्राइक रेट 1200 प्रतिशत तक बढ़ गया है.
के.पी. शर्मा ओली अखबार में लिखते हैं कि ‘नेपाल संक्रमण की इस रफ़्तार से घबराया हुआ है और उनके देश को दुनिया से तत्काल मदद की जरूरत है’
1 लाख लोगों पर एक डॉक्टर भी नहीं
अगर भारत और नेपाल की तुलना करें तो इस समय नेपाल से ज्यादा संक्रमण अकेले दिल्ली शहर में फैला हुआ है. लेकिन इसके बावजूद नेपाल में डर का माहौल है और इस डर की भी अपनी कई वजह हैं. दरअसल, पूरे नेपाल में 3 करोड़ लोगों पर सिर्फ 1595 ICU बेड्स हैं. यानी इस हिसाब से 19 हजार लोगों पर एक ICU बेड है.
इसी तरह पूरे देश में केवल 480 वेंटिलेटर्स उपलब्ध हैं. यानी नेपाल में 62 हजार लोगों पर एक वेंटिलेटर है.
नेपाल में डॉक्टर्स की भी काफी कमी है. नेपाल में 1 लाख लोगों पर 0.7 डॉक्टर हैं. यानी एक लाख लोगों पर एक से भी कम डॉक्टर है और ये डेटा वर्ल्ड बैंक का है.
नेपाल के 77 में से 22 जिलों में अस्पतालों में बेड्स की भारी कमी है. ये वो जिले हैं, जहां संक्रमण अगर तेजी से फैला तो लोगों को अस्पतालों में इलाज ही नहीं मिल पाएगा. हजारों लोग बिना इलाज के ही दम तोड़ देंगे और फिलहाल इस तरह की स्थितियां वहां बनने लगी हैं.
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‘माउंट एवरेस्ट पर भी पहुंचा कोरोना’
कहते हैं कि दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर इंसानों को पहुंचने में 5 हजार वर्ष लग गए थे. वर्ष 1953 में पहली बार पर्वतारोही Edmund Hillary और Tenzing Norgay ने माउंट एवरेस्ट को फतह किया था. लेकिन कोरोना वायरस ने ये कामयाबी सिर्फ एक साल में हासिल कर ली है. खबर है कि माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई में कुल 17 लोग संक्रमित हुए हैं.
संक्रमण से अपने लोगों को बचाने के लिए नेपाल के पास मजबूत Health Care System नहीं है. ऐसे में इस संकट को टालने के लिए उसके पास एक ही विकल्प बचता है और ये विकल्प है वैक्सीन का. लेकिन दुर्भाग्यवश नेपाल के पास अपनी कोई वैक्सीन नहीं है.
वैक्सीन के लिए भारत-चीन पर निर्भर नेपाल
नेपाल वैक्सीन के लिए भारत और चीन पर निर्भर है. ‘वैक्सीन मैत्री’ के तहत भारत ने नेपाल को 10 लाख डोज दी थी. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद भारत ने कोरोना वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगा दी और इससे नेपाल में टीकाकरण अभियान भी रुक गया. नेपाल में अब तक सिर्फ 7.2 प्रतिशत लोगों को ही वैक्सीन की एक डोज लग पाई है और इन लोगों को दूसरी डोज लगाने के लिए भी नेपाल के पास वैक्सीन नहीं है. इसीलिए नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने वैक्सीन के लिए भी मदद मांगी है.
तो नेपाल की ये पूरी स्थिति है और आप समझ गए होंगे कि क्यों वहां के प्रधानमंत्री को दुनिया से मदद मांगने के लिए अखबार का सहारा लेना पड़ा.
फायदा उठाने की फिराक में चीन
यहां हम आपको एक बड़ी बात ये बताना चाहते हैं कि चीन ने नेपाल के इस संकट में अपने लिए मौका भी तलाश लिया है. भारत इस वक्त खुद कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है और नेपाल की मदद नहीं कर पा रहा है, ऐसे में चीन इसे नेपाल पर अपना प्रभुत्व कायम करने के मौके की तरह देख रहा है.