नई दिल्ली: हम आपको कोरोना के एक नए खतरे से सावधान करना चाहते हैं और ये खतरा है म्यूकोरमाइकोसिस का, जिसे ब्लैक फंगस भी कहा जाता है. इस समय पूरे देश में ब्लैक फंगस के कुल मामलों की संख्या 7,250 है और इस बीमारी से 219 लोगों की मौत पिछले कुछ दिनों में हुई है. यानी कोरोना के संक्रमण के साथ ये बीमारी भी गंभीर चिंता का विषय बन गई है. 

किस राज्य में कितने मामले?

इस बीमारी से जुड़ा लेटेस्ट अपडेट ये है कि महाराष्ट्र में ब्लैक फंगस के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. वहां कुल मामलों की संख्या लगभग 1500 है और मौतों का आंकड़ा भी 100 पहुंचने वाला है. दूसरे स्थान पर गुजरात है, जहां ब्लैक फंगस के 1163 मरीज मिले हैं और 61 लोगों की इससे मौत हुई है. फिर इस सूची में तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश है. वहां कुल मामले 574 हैं और इससे मौतें हुई हैं 31. इसके अलावा हरियाणा में ब्लैक फंगस के 268 मरीज मिले हैं और 8 मौतें हुई हैं. दिल्ली में इससे मौत तो एक ही हुई है लेकिन मरीजों की संख्या बढ़ कर 203 हो गई है.

ये भी पढ़ें- आखिर क्यों आई Ganga नदी में लाशें बहाने की नौबत? 

ब्लैक फंगस के आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता

म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस एक प्रकार का इंफेक्शन है. जैसे कोरोना वायरस है. ये संक्रमण ‘म्यूकर’ नाम के फंगस की वजह से होता है और इसलिए इसे म्यूकोरमाइकोसिस और ब्लैक फंगस कहा जाता है. डॉक्टरों का कहना है कि वैसे तो ये फंगस हर जगह होता है. जैसे हवा में, धूल में और मिट्टी में भी ये फंगस पाया जाता है. इसके अलावा एक स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी ये फंगस मिलता है. आप सोच रहे होंगे कि जब ये फंगस पहले से हमारे आसपास और शरीर में मौजूद है तो फिर इस बार ये नुकसान क्यों पहुंचा रहा है?

तो आपके इस सवाल का जवाब इसको लेकर हुई कई स्टडीज और रिसर्च में है. इन सभी अध्ययनों में कहा गया है कि आमतौर पर ये फंगस नुकसान नहीं पहुंचाता. क्योंकि हमारे शरीर के अंदर जो Immune System है, वो इसे रोक कर रखता है. वो इस फंगस की पहचान करता है, फिर अलर्ट हो जाता है और फिर ये फंगस एक स्वस्थ शरीर का कुछ नहीं बिगाड़ पाता. लेकिन जब किसी व्यक्ति का Immune System कमजोर होता है तो इस फंगस के लिए शरीर पर हमला करना आसान हो जाता है और कोरोना से रिकवर हो चुके मरीजों में ये इसीलिए अपनी प्रभाव दिखा रहा है.

Notifiable Disease घोषित

पहले भारत में हर वर्ष ब्लैक फंगस से जुड़े औसतन 8 से 10 मामले ही दर्ज होते थे. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में ये आंकड़ा 7 हजार के पार चला गया है और आशंका है कि ये संख्या जल्द 10 हजार के पार होगी. यानी ब्लैक फंगस का संक्रमण अभी थमने वाला नहीं है और इसी वजह से कई राज्यों ने इसे Notifiable Disease घोषित कर दिया है. 

Epidemic Diseases Act 1897 के तहत Notifiable Disease उस बीमारी को कहते हैं, जिसमें किसी भी राज्य के सभी अस्पतालों को यानी सरकारी और प्राइवेट दोनों को इससे जुड़े सभी मामलों को रिपोर्ट करना होता है और सारी जानकारी राज्य सरकारों के संबंधित विभाग को दी जाती है. अब तक 8 राज्य- राजस्थान, गुजरात, ओडिशा, हरियाणा, कर्नाटक, तमिला नाडु, तेलंगाना और पंजाब ऐसा कर चुका हैं. यानी इन राज्यों में अब इस बीमारी से जुड़े सभी मामले राज्य सरकारों को रिपोर्ट किए जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- सिंगापुर में मिला वेरिएंट भारत में भी मौजूद, बच्चों को तेजी से बना रहा निशाना

किन लोगों को सबसे ज्यादा खतरा? 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालाय और ICMR के मुताबिक ब्लैक फंगस उन लोगों पर हमला करता है, जो किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण दवाइयां ले रहे हैं और इन दवाइयों की वजह से उनकी इम्यीनिटी यानी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है. यह फंगल इंफेक्शन नाक से शुरू होता है, फिर आंखों में पहुंचता है और फिर दिमाग तक जाता है. सरल शब्दों में कहें तो जिसकी इम्यूनिटी कमजोर है, उन लोगों को सावधान रहने की जरूरत है. खास कर जिन लोगों को डायबिटीज है. 

एक स्टडी में बताया गया है कि जिन लोगों में डायबिटीज अनियंत्रित होती है, उन लोगों को ब्लैक फंगस का खतरा अधिक होता है. खास तौर पर ऐसे मामलों में जब डायबिटीज के किसी मरीज को कोरोना हुआ हो. और कोरोना के बाद संभव है कि उसे ये फंगल इन्फेक्शन हो जाए.

– जो मरीज काफी समय तक ICU में रहे हैं, उन्हें ब्लैक फंगस हो सकता है.
– अगर आप किसी गंभीर बीमारी का शिकार हैं और ट्रांसप्लांट या फिर किसी और स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं तो ये फंगल इन्फेक्शन हो सकता है.
– किसी भी अंग की ट्रांसप्लांट सर्जरी के बाद ये इन्फेक्सन हो सकता है.
– जो लोग स्टेरॉयड का अधिक सेवन कर रहे हैं, उन्हें भी ये इन्फेक्शन होने की सम्भावना है. 

इस समय ब्लैक फंगस के जितने भी मरीज मिल रहे हैं, उनमें अधिकतर या तो डायबिटिक हैं या वो लोग हैं जो कोरोना से संक्रमित हुए थे और इस दौरान उन्होंने स्टेरॉयड दवाइयां लीं. असल में जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित होता है तो शुरुआत में ही मरीजों को स्टेरॉयड लेने की सलाह दी जाती है और मरीज कोरोना से बचने के लिए स्टेरॉयड का अधिक सेवन करते हैं और फिर ब्लैक फंगस का शिकार होते हैं. 

किन बातों का रखें ख्याल? 

ICMR के मुताबिक संक्रमण होने के 6 दिन तक स्टेरॉयड दवाइयां नहीं खानी चाहिए. लेकिन अभी इन दिशा-निर्देशों की अनदेखी हो रही है या लोग लापरवाही कर रहे हैं. एक स्टडी में बताया गया है कि कोरोना के 80 प्रतिशत मरीजों को स्टेरॉयड की आवश्यकता नहीं होती लेकिन हमारे देश में इस समय कोरोना के अधिकतर मरीज ऐसे हैं, जो बिना जरूरत के ही और बिना डॉक्टरी सलाह के स्टेरॉयड का सेवन कर रहे हैं. 

जबकि डॉक्टर्स कहते हैं कि अगर संक्रमण होने के बाद बुखार 5 से 7 दिन के बाद भी नहीं उतरता तब स्टेरॉयड दवाइयां ली जा सकती हैं. यानी पहले आपको इस बात का ध्यान रखना है कि बिना डॉक्टरी सलाह के स्टेरॉयड दवाइयां नहीं लेनी हैं. खासकर डायबिटीज के मरीजों को. क्योंकि इसके अधिक इस्तेमाल से ब्लड शुगर अनियंत्रित हो जाता है. 

एक और बात.. स्टेरॉयड के इस्तेमाल से कोरोना मरीजों के फेफड़ों में सूजन को कम किया जाता है और जब शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अतिसक्रिय हो जाती है तो उस दौरान ये स्टेरॉयड शरीर को कोई नुकसान होने से रोकने में मदद करते हैं.

लेकिन ये इम्यूनिटी कम करते हैं और डायबिटीज या बिना डायबिटीज वाले मरीजों में शुगर का स्तर बढ़ा देते हैं. माना जा रहा है कि ऐसे में इम्यूनिटी कमजोर पड़ने के कारण ही ब्लैक फंगस हो रहा है.

क्या हैं ब्लैक फंगस के लक्षण

पहला लक्षण- साइनस की परेशानी और नाक का बंद हो जाना
दूसरा लक्षण- दांतों का अचानक टूटना या आधा चेहरा सुन्न पड़ जाना
तीसरा लक्षण- नाक से काले रंग का पानी निकलना या खून बहना
चौथा लक्षण- आंखों में सूजन और धुंधलापन, यही नहीं कई मामलों में मरीज की आंखों की रोशनी भी चली जाती है.
पांचवां लक्षण- सीने में दर्द उठना
छठा लक्षण- सांस लेने में तकलीफ होना
और सातवां लक्षण- बुखार रहना

कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक ब्लैक फंगस

अब बड़ी बात ये है कि म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस की बीमारी में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है. यानी मान लीजिए अगर 100 लोगों को ये बीमारी हुई तो 50 लोगों की मौत हो जाएगी. जबकि कोरोना वायरस की मृत्यु दर पूरी दुनिया में 2 प्रतिशत बताई जाती है. यानी 100 लोगों को कोरोना हुआ तो 2 लोगों की मौत होगी. कहने का मतलब ये है कि ये फंगल इन्फेक्शन कोरोना के संक्रमण से भी खतरनाक और जानलेवा है.

क्या है ब्लैक फंगस का इलाज

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि इस बीमारी के इलाज में (एम्फोटेरसिन बी) Amphotericin B Injection काफी प्रभावी है. हालांकि अब इस दवा की भी कई राज्यों में कमी होने लगी है. इस समय महाराष्ट्र में ब्लैक फंगस के सबसे ज्यादा 1500 मामले हैं और राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार से Amphotericin B की डेढ़ लाख Vials मांगी हैं जबकि उसे मिली सिर्फ 16 हजार हैं.

इसके अलावा दिल्ली, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश ने भी कहा है कि उनके पास इस दवा की कमी है. जबकि केन्द्र सरकार ने इसके उत्पादन को बढ़ाने की बात कही है. भारत सरकार का कहना है कि जून महीने तक देश में इस दवा की 5 लाख 70 हजार Vials मौजूद होंगी.

ब्लैक फंगस से कैसे बचें?

इसके अलावा जुलाई महीने तक देश में इस दवा की 1 लाख 11 हज़ार Vials का हर महीने उत्पादन हो सकेगा. यानी ऑक्सीजन और Remdesivir के बाद अब इस दवा ने नई चुनौती देश के सामने खड़ी कर दी है. हालांकि आप कुछ बातों का ध्यान रखते हुए ब्लैक फंगस से बच सकते हैं. 

पहली सलाह- कोरोना से ठीक होने के बाद अपना ब्लड शुगर लेवल चेक करते रहें और इसे नियंत्रित रखें
दूसरी सलाह- डॉक्टर की सलाह के बाद ही स्टेरॉयड का उपयोग करें
तीसरी सलाह- एंटीबायोटिक और एंटीफंगल दवाइयों का उपयोग कैसे करना है, इसपर भी डॉक्टर की सलाह जरूर लें. 
चौथी सलाह- ऑक्सीजन ले रहे हैं तो Humidifier में साफ पानी का ही इस्तेमाल करें.
पांचवीं सलाह- ब्लैक फंगस के लक्षण दिखने पर इम्यूनिटी बूस्टर दवाइयों को बंद कर दें
छठी सलाह- इसके इलाज के लिए अपने शरीर को हाइड्रेट रखें यानी पानी की कमी न होने दें.