नई दिल्ली: कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान पूरे देश ने लोगों को सांसों के लिए संघर्ष करते देखा. मार्च और अप्रैल के महीने के बीच भारत में ऑक्सीजन का संकट अपने चरम पर था. कई राज्यों से ऐसी खबरें भी आईं, जहां अस्पतालों में ऑक्सीजन खत्म होने से मरीजों ने दम तोड़ दिया और भारत से पहले अमेरिका और यूरोप में जब पिछले वर्ष कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई तो वहां भी इस तरह का संकट था. लेकिन आपने इन देशों की ऐसी तस्वीरें नहीं देखी होंगी, जिस तरह की तस्वीरें हमारे देश में देखने को मिलीं.
आज भारत में कोरोना वायरस के मामले कम होने के साथ ऑक्सीजन का संकट खत्म होने की तरफ है. लेकिन इस समय दुनिया के 19 देश ऐसे हैं, जहां ऑक्सीजन का संकट काफी गंभीर रूप ले चुका है. लेकिन इन देशों की चर्चा कहीं नहीं हो रही.
19 देशों में ऑक्सीजन की किल्लत
अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा भी इन देशों से वैसी कवरेज नहीं हो रही, जैसी भारत के मामले में हुई. इसलिए आज हम आपको उन देशों के बारे में बताएंगे, जहां कोरोना वायरस के मामले अचानक बढ़ने से ऑक्सीजन की काफी कमी हो गई है और लोग सांसों के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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इस समय 19 देश ऐसे हैं, जहां ऑक्सीजन की कमी की वजह से कोरोना मरीजों की मौत हो रही है. इनमें पाकिस्तान, नेपाल, ईरान, थाईलैंड, मलेशिया, फिलिपिंस, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना और कोलंबिया प्रमुख हैं. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इन देशों में टीकाकरण की दर कम होने से संक्रमण बढ़ा है और अब यहां मौतें भी ज्यादा हो रही हैं. नए मरीज बढ़ने से इन देशों में ऑक्सीजन की मांग भी बढ़ गई है.
इन देशों में ऑक्सीजन की मांग बढ़ी
नेपाल में ऑक्सीजन की मांग 100 गुना बढ़ गई है. नेपाल के हालात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वहां पर माउंट एवरेस्ट की यात्रा पर जाने वाले पर्वतारोहियों से ऑक्सीजन के खाली सिलेंडर्स मांगे गए हैं ताकि उनका इस्तेमाल अस्पतालों में हो सके. श्रीलंका में ऑक्सीजन की मांग 7 गुना बढ़ गई है. पाकिस्तान को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन वहां भी ऑक्सीजन की भारी कमी है. लाओस में ऑक्सीजन की मांग 200 गुना बढ़ गई है.
लंदन के एक NGO ‘Bureau of Investigative Journalism’ ने बताया है कि कम से कम 30 देशों में ऑक्सीजन की मांग दोगुना बढ़ गई है. और इनमें ज्यादातर छोटे देश हैं. Fiji, वियतनाम, अफगानिस्तान, कम्बोडिया, मंगोलिया और किर्गिस्तान इनमें प्रमुख हैं. ऑक्सीजन के इस संकट को अगर आंकड़ों से समझें तो पूरी दुनिया में लिक्विड ऑक्सीजन प्रोडक्शन के कुल उत्पादन में मेडिकल ऑक्सीजन का हिस्सा मात्र 1 प्रतिशत है.
भारत के खिलाफ ‘पश्चिमी साजिश’
बाकी 99 प्रतिशत ऑक्सीजन अलग-अलग उद्योग क्षेत्रों में इस्तेमाल होती है. इस ऑक्सीजन को इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन कहते हैं, जो माइनिंग, एरोनॉटिक्स, पेट्रो केमिकल्स और वॉटर ट्रीटमेंट में इस्तेमाल होता है. हालांकि भारत में जब ऑक्सीजन संकट गहराया था तो तमाम कंपनियों ने मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन शुरू कर दिया था और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का उत्पादन रोक दिया गया था. भारत ने ऐसा करके स्थिति को संभालने की कोशिश की. लेकिन इसके बावजूद पश्चिमी देशों की मीडिया ने इस पूरे संकट को अलग तरह से पेश किया.
जबकि कई देश ऐसे हैं, जहां मेडिकल और इंडस्ट्रियसल ऑक्सीजन का भी इतना उत्पादन नहीं होता कि लोगों की जान बचाई जा सके. उदाहरण के लिए इराक की गैस कंपनियां अपने देश के एक तिहाई मरीजों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कर सकती हैं. कोलम्बिया में ये आंकड़ा दो तिहाई है, और पेरु में 80 प्रतिशत आपूर्ति की जा सकती है.
भारत की छवि खराब करने की कोशिश
लेकिन इसके बावजूद चर्चा सिर्फ भारत की होती है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को बदनाम किया जाता है. हम मानते हैं कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर में ऑक्सीजन संकट ने व्यवस्था में कमियों को उजागर किया लेकिन क्या ये संकट सिर्फ भारत तक सीमित है. जवाब है नहीं.
इस समय जापान में कोरोना वायरस के केस तेजी से बढ़ रहे हैं और वहां हालात अच्छे नहीं हैं. अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए बेड्स नहीं हैं, वेंटिलेटर नहीं हैं और डॉक्टरों की भी कमी है.