रांची: झारखंड (Jharkhand) में स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह (Health Saftey Week) की सख्ती है, इसके बावजूद कृषि विभाग सब्जी और तरबूज जैसे फलों (Vegitable and Fruits) की बिक्री के लिए बेहतर प्रबंधन का दावा कर रहा है. लेकिन हालात एकदम उलट है. रांची (Ranchi) के पास बड़ी संख्या में किसान सब्जी उगाते हैं. ऐसे में झारखंड सरकार (Jharkhand Government) और कृषि विभाग (Agriculture Department) के दावों और किसानों की असल माली हालत जानने के लिए ज़ी न्यूज़ (Zee News) की टीम राजधानी से महज कुछ दूर स्थित नगड़ी सब्जी मंडी पहुंची.
किसान खेत में उम्मीद बोते हैं, पसीना बहाते हैं, जमा रकम खर्च करते हैं पर उनकी फसल की उन्हें क्या कीमत मिल रही है वो भी आपको बताना जरूरी है. लॉकडाउन (Lockdown) ने किसानों की कमर तोड़ दी है. यहां किसानों की खुशहाली के सरकारी दावे झूठे हैं. मेहनती किसान खेत से अपनी उम्मीद बाजार ले तो जाते हैं, वहां उन्हें खून-पसीने की कमाई का सही भाव यानी दाम नहीं मिल रहा है.
पैदावार सड़क पर फेकने की मजबूरी
कोरोना काल की पाबंदियों के बीच इन दिनों मंडी में लोगों की आवक कम है. सब्जी की बिक्री में भी भारी कमी आई है. ऐसे में किसान जज्बाती होकर अपने टमाटर सड़क पर फेंक रहे हैं. हालात से बेबस युवा किसान मंडी में टमाटर और खीरे का भाव एक रुपये प्रति किलो और पचास पैसे प्रति किलो लगने से आहत है. इनकी मानें तो वो इन्हे घर ले जा कर जानवरों को भी नहीं खिला सकते हैं, क्योंकि एक ही चीज ज्यादा खाने से वो बीमार पड़ जाएंगे.
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मंडी आने वाले किसान सुबह पांच बजे तक अपने खेत की सब्जी को बेचने के लिए नगड़ी मार्किट पहुंच जाते हैं, इन्हें वहां भी अक्सर खरीदार नहीं मिलते. ये सभी छोटे जोत वाले किसान हैं जो बड़े परेशान हैं. लॉक डाउन में इनकी उम्मीदें अभी तक कृषि विभाग के प्रबंधन के भरोसे टिकी हैं.
नगड़ी मंडी का भाव
टमाटर : 1 रुपये/Kg
खीरा : 1 रुपये/Kg
मूली : 1 रुपये/Kg
कोहरा : 1 रुपये/Kg
नेनुआ : 2 रुपये/Kg
गोभी : 3 रुपये/पीस
भुट्टा : 5 रुपये/Kg
केला : 5 रुपये/Kg
करेला : 6 रुपये/Kg
बैगन : 7 रुपये/Kg
इसी तरह भिंडी की बात करें तो ताजी बढ़िया भिंडी के दाम 10-12 रुपये प्रति किलो लग रहे हैं. वहीं बींस की बात करें इसके लिए भी कोई व्यापारी 10 से 12 रुपये प्रति किलो से ज्यादा भाव देने को तैयार नहीं है. नेनुआ भले ही दो रुपये प्रति किलो का दाम लगा हो लेकिन उसके तो खरीददार तक नहीं मिल रहे हैं.
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मंडी में शोषण कब रुकेगा?
मंडी का खेल भी निराला है, जो व्यापारी सब्जी किसान से खरीदते हैं. वो किसान को कैसे बौना बना देते हैं आइए बताते हैं. यहां आने वाले व्यापारी इन किसानों को औने पौने दाम पर फसल बेचने को मजबूर करते हैं. ये शोषण का ये खेल किस तरह खेला जाता है वो भी बताते चलें तो व्यापारी पहले थोड़ी सब्जी किसान से उनके लगाए रेट पर खरीदते हैं फिर कुछ देर में एलान कर देते हैं कि उनका कोटा फुल हो गया है इसलिए अब वो खरीदी नहीं कर सकते हैं.
बस यहीं से उनकी मजबूरी का फायदा उठाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. खरीदार अगर माल खरीदना ही नहीं चाहेगा तो कीमत तो अपने आप गिर जायेगी. ऐसे में किसानों के पास दो ही विकल्प बचते हैं. एक या तो वो 1-2 रुपये प्रति किलो में अपना हिस्सा बेच दें या फिर मंडी से फसल ले जाकर उसे बर्बाद कर दे.
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