नई दिल्ली: हम आपको विदेशी मीडिया के Double Standards के बारे में बताना चाहते हैं. आपने देखा होगा कि पिछले कुछ दिनों से हमारा देश विदेशी मीडिया के लिए नई प्रयोगशाला बन गया है. हमारे देश के अस्पताल, श्मशान घाट, जलती चिताएं, लाशों की कतार और ऑक्सीजन के लिए इधर उधर भटकते मरीजों की तस्वीरें विदेशी अखबारों के पहले पन्ने पर छप रही हैं. कई चैनल हमारे देश के अस्पतालों में जाकर मरीजों का हाल दुनिया को बता रहे हैं. ये मीडिया का कर्तव्य है कि वो इस तरह के संकट में भी कवरेज करे और हालात के बारे में लोगों को बताए लेकिन विदेशी मीडिया कैसे इसकी आड़ में हमारे देश को बदनाम कर रहा है, आज ये समझने का भी दिन है.
दोहरा चरित्र क्यों?
कई अंतरराष्ट्रीय चैनल के रिपोर्टर्स इस समय भारत के अस्पतालों में ICU वॉर्ड्स की स्थितियां दिखा रहे हैं. वहां जाकर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं लेकिन हमारा सवाल है कि जब इसी तरह के हालात अमेरिका में थे, ब्रिटेन में थे और यूरोप के देशों में सैकड़ों लोग कोरोना वायरस (Coronavirus) से मर रहे थे तब इन चैनलों की रिपोर्टिंग टीम वहां के अस्पतालों में क्यों नहीं गई और क्यों तब इन्होंने अपने देश के ICU वॉर्ड्स का हाल लोगों को नहीं बताया? इसे आप दूसरे Point से समझिए. अमेरिका में जब 11 सितम्बर 2001 को World Trade Center पर आतंकवादी हमला हुआ था तब अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने मृतकों की तस्वीरें नहीं छापी थीं. तब इनका मानना था कि इससे मृतकों के परिवारों को ठोस पहुंचेगी और ये उनकी गरिमा को भी भंग करेगा. यही तर्क पश्चिमी मीडिया के कई अखबारों और चैनलों का तब था जब उनके देशों में कोरोना वायरस से हर दिन हजारों मौतें हो रही थीं. उस समय भी मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार की तस्वीरें अखबारों में नहीं छापी गईं. इन देशों में सैनिकों के शवों को भी नहीं दिखाया जाता
गिद्ध की तरह टूट पड़ा पश्चिमी मीडिया
जब बात भारत की आई तो ये सारे अखबार और चैनल गिद्ध की तरह हम पर टूट पड़े. भारत में जलती चिताओं की तस्वीरें इन अखबारों के पहले पन्ने पर छापी गईं. कई अंतरराष्ट्रीय Magazines के Cover Page पर लाशों की तस्वीरों को प्रकाशित किया गया. इसके अलावा हमारे देश में कोरोना से मरते लोगों को विदेशी मीडया ने मजाक बना कर रख दिया. महत्वपूर्ण बात ये है कि पश्चिमी देशों में हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार की क्रिया को कोतूहल से देखते हैं. उनमें हमेशा जिज्ञासा बनी रहती है और इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए इस तरह की तस्वीरें दिखाते हैं. यानी पश्चिमी मीडिया अपने लोगों की उत्सुकता को शांत करने के लिए जलती हुई चिताओं की तस्वीरें दिखाता रहा है और कई उपन्यासों में भी इसका उल्लेख किया है.
गरिमा और सम्मान की अनदेखी
ऐसा करते हुए पश्चिमी देशों का मीडिया ये भूल जाता है कि अंतिम संस्कार की क्रिया किसी भी परिवार के लिए बहुत ही निजी और कठिन पल होता है. इसलिए इन तस्वीरों से अपने लोगों की उत्सुकता को शांत करना कभी भी जायज नहीं हो सकता. पश्चिमी मीडिया को ये समझना चाहिए कि जो गरिमा और सम्मान वो अपने लोगों को मरने के बाद देते हैं, वैसे ही सम्मान हमारे देश के लोगों को भी मिलना चाहिए.
जनसंख्या का बड़ा अंतर
यहां हम आपसे एक बात ये कहना चाहते हैं कि यूरोप में कुल देशों की संख्या 48 है. इन देशों में कोरोना के कुल मरीजों की संख्या लगभग साढ़े चार करोड़ है और 10 लाख लोग इस वायरस से मर चुके हैं. अगर हम इन सभी देशों की आबादी को जोड़ भी दें तो ये आंकड़ा लगभग 75 करोड़ होता है. अगर हम इसमें North America के 39 देशों की कुल आबादी को भी जोड़ दें तो ये आंकड़ा 134 करोड़ के आसपास होता है यानी एक तरफ ये 87 देश हैं और दूसरी तरफ अकेला भारत है. आप कह सकते हैं कि भारत में 87 देशों की आबादी बसती है. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के हालात इन देशों से बेहतर हैं.
भारत में 87 देशों की आबादी फिर भी हालात बेहतर
जहां इन 87 देशों में कोरोना मरीजों की संख्या 8 करोड़ है तो भारत में ये आंकड़ा लगभग 2 करोड़ 27 लाख है. इसके बावजूद इन देशों का मीडिया हमारे देश को बदनाम करता है और हमारे लोगों की जलती चिताओं पर हाथ सेंकता है. इसलिए आज जरूरी है कि आप अंतरराष्ट्रीय मीडिया के Double Standards और उसके ऐजेंडे को भी समझें. इसे आप इन आंकड़ों से समझ सकते हैं-
आंकड़े देते हैं गवाही
अमेरिका में कोरोना वायरस से हर 10 लाख लोगों पर 1754 लोगों की मौत हुई है,
ब्रिटेन में ये आंकड़ा 1883 है, इटली में 2025 है, Russia में 2020 तक 1273 था, जर्मनी में ये 1 हजार 10 है और कनाडा में 649 है जबकि भारत में 10 लाख लोगों पर मौत का आंकड़ा 172 है. हमारा मानना है कि ये संख्या इससे भी कम होनी चाहिए. लोगों की जानें बचनी चाहिए लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि पश्चिमी देशों से बेहतर स्थिति भारत में है, इसके बावजूद ये देश हमारे लोगों की जलती चिताओं से अपनी उत्सुकता को शांत करते हैं और हमारी भावनाओं का मजाक बनाते हैं.
अलग-अलग देशों का हाल
इस समय जब भारत के अधिकतर राज्यों में लॉकडाउन (Lockdown) जैसी पाबंदियां हैं और संक्रमण तेजी से फैल रहा है तब दूसरे देशों में कैसे हालात हैं, ये समझना भी जरूरी है-
जर्मनी
सबसे पहले आपको भारत से लगभग 7 हजार किलोमीटर दूर जर्मनी लेकर चलते हैं, जहां लॉकडाउन तो पहले ही हटा लिया गया था और अब वहां लोगों के लिए सार्वजनिक पार्क भी खोल दिए गए हैं. यहां के नागरिकों ने एक साल तक कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अब वहां के कई इलाकों को कोरोना मुक्त घोषित कर दिया गया है और बड़ी बात ये है कि इन इलाकों में लोगों के लिए मास्क लगाना भी जरूरी नहीं है.
स्पेन
स्पेन में भी पाबंदियां हटने के बाद लोगों ने खूब जश्न मनाया और इस तरह की भीड़ वहां एक साल बाद पहली बार देखी गई. Barcelona शहर में अब लोग बिना मास्क के बाहर आ जा सकते हैं. यानी वहां मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग पुराने जमाने की बात हो चुकी है.
फ्रांस
फ्रांस में भी हालात सामान्य होने लगे हैं और जिन्दगी वापस पहले की तरह होने लगी है. वहां Hotel, Restaurants और बार खुल गए और लोग इस आजादी को सेलिब्रेट कर रहे हैं.
ब्रिटेन
ब्रिटेन में भी अब कोरोना वायरस काफी सीमित हो गया है और वहां लोग डर के माहौल में नहीं जी रहे हैं. वहां भी लोगों का जीवन सामान्य होने लगा है.
हम आपको यहां यही बताना चाहते हैं कि अगर आपने धैर्य रखा, अनुशासन और ईमानदारी के साथ सभी नियमों का पालन किया तो ये दिन आप भी देख पाएंगे. ये दिन आपकी जिन्दगी में जरूर आएगा.
कोरोना प्रोटोकॉल का पालन क्यों नहीं?
हालांकि हमारे देश में अब भी कई लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं और कई राज्यों में लोगों की भीड़ जुट रही है. आपको याद होगा पिछले दिनों हमने आपको कुम्भ की तस्वीरें दिखाई थीं और अहमदाबाद की तस्वीरें भी दिखाई थीं, जहां पर सैकड़ों महिलाएं धार्मिक कार्यक्रम के लिए सड़कों पर उतर आई थीं ऐसी तस्वीर आज उत्तर प्रदेश के बदायूं में दिखी, यहां एक मुस्लिम धर्मगुरु के निधन के बाद लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई. जब मुस्लिम धर्मगुरु की मौत की खबर लोगों को मिली तो उन्हें देखने के लिए लोगों को हुजूम उमड़ पड़ा. ये जानते हुए कि इस भीड़ में कोरोना का विस्फोट भी हो सकता है. इन लोगों ने पुलिस की चेतावनी को भी नजरअन्दाज की और कई घंटों तक रिहायशी इलाकों के पास इस तरह की भीड़ जुटी रही.
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नियमों के पालन से ही जीत संभव
भारत कोरोना वायरस की दूसरी लहर से संघर्ष क्यों कर रहा है, इसे आप खुद समझ सकते हैं. एक तरफ वो देश हैं, जिन्होंने कड़े लॉकडाउन का पालन किया, लोगों ने नियमों का सम्मान किया और कोरोना वायरस पर जीत हासिल की और दूसरी तरफ भारत के ये कुछ लोग हैं, जो अब भी समझने के लिए तैयार नहीं हैं. जहां अब भी इस तरह की भीड़ जुट रही है, जिससे ऐसा लगता है कि हमारे देश में कोरोना वायरस है ही नहीं.
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